हिन्दी हैं हम,वाटन है.........
सारा जहाँ हमारा
गुरुवार, 14 मई 2009
सघर से कूब बुझे है
सघर
से
कूब
बुझे
है
ये
सदिओं
की
तश्नगी
डोर
-
रस
ना
-
खुदा
ने
कश्ती
,
सागर
मे
उत्ारदी
ले
डूबने
को
भंवर
,
खाहिशों
के
बे
-
क़रार
थे
दूर्र
-
ए
-
आशिक़ी
की
खोज
मे
,
सदाफ़
ने
उमर
गुज्रादी
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