उस शाम का कहो क्या करें
जिसे कभी सहर ना मिल सकी
जिस प्याम की हुमें तलाश थी
कभी वो सितार ना मिल सकी
क्यों इस उदास माह-ए-फिराक़ कू
एक शब-ए-क़दर ना मिल सकी
धड़कने का तो बस गुमान है
एक धड़कन मगर ना मिल सकी
कभी वाएेज़ के क़ौल-ओ-क़रार से
किसी को कौसर ना मिल सकी
चाँद जो तालिब-ए-दो जहाँ रहे
उन्हें इश्क़ की नज़र ना मिल सकी
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