बुधवार, 20 मई 2009

गुलशन को


गुलशन को सेहरा मे ढलते देखा
आसमान से दरया को उबलते देखा
पठार को घूम से पिघलते देखा
जुब कातिब को तक़दीर बदलते देखा
होश वालों को सदा जलते देखा
हेर आरज़ू पे हाथ मलते देखा
दामन तेरे हाथों से फिसलते देखा
उस के दिल से तुझ को निकलते देखा
राहगीर को गिर के संभालते देखा
रहनुमा को उसी राह पेर चलते देखा
सराब को नया चेहरा बदलते देखा
"चाँद" आज फिर दिल को मचलते देखा

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