ना चीनो नादनो मुझ से जवानी मेरी
बड़े नाज़ नखरों से रुकी है अभी
जो जेया के ना आए वो बाहर है
इष्क़ की फ़िज़ा मे डोले है अभी
खूबसूरत है ये,बे-वफ़ा है ज़ालिम अदा
हेर नज़र उस की महबूब है अभी
क़ातल महबूब जाने,इस ने कितने किए
हेर वार इस का कारी है अभी
हुस्न को है इबादत का दर्जा दिया
और खुद काफ़िर बनी खड़ी है अभी
लम्हा लम्हा जीने दो इस में मुझे
ज़िंदगी का इस में मज़ा है अभी
वो मेरी हम सफ़र है हमराज़ है
“चाँद”कभी रुकी ना रुके है अभी
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