गुरुवार, 14 मई 2009

उस के करम की इंतिहा देखो


उस के करम की इंतिहा देखो
घूम दे कर रोने भी नही देता
कहता है जागा ना कर रातों कू
ख़यालों मे आकर सोने भी नही देता
दुआ उसकी अजब सरकश है ना मिलने की
आरज़ू बन कर मचलने भी नही देता
कहता है ना कर हसरातों से वाडा
मेरी शाम को ढालने भी नही देता
सोचा है वासल का तोहफा अनोखा हो
वक़्त वो लम्हा बिखरने भी नही देता
एक सुबा सुनेहरी हो,रूबरू वो हो
ख्वाब,ताबिर से मिलने भी नही देता
तू जो चाहे,चाहूं वही मई भी
चाँद अर्ज़ी रद्द होने भी नही देता

1 टिप्पणी:

  1. उस के करम की इंतिहा देखो ,
    ग़म दे कर रोने भी नहीं देता.

    कहता है जागा ना कर रातों को ,
    ख़यालों में आकर सोने भी नहीं देता.
    wah kya karam hai ! subhaan allah

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