एक रोज़ का तमाशा
जीवन की हर खुशी है
हर साँस आती जाती
क्यों बोझ सी बनी है
क्या यही ज़िंदगी है
जज़्बात वो कहाँ हैं
बहकी तीन आरज़ुएँ
हालात वो कहाँ हैं
तू भी मुझ से नलान
मुझ मे ना ढाल सका
क्यों हुस्न-ओ-इश्क़ ज़िंदगी का
मुझ को ना मिल सका
जज़्बा जहद का
कहाँ जेया के सो गया
जुनून फ़ैसलों का
क्यों एक लख्त खो गया
इस दीवानगी को यारो
तुम कोई नाम दे दो
टिशणा काविशों को
"चाँद"का प्याम दे दो
सार्थक हो जज्बात तो सुधरेंगे हालात।
जवाब देंहटाएंगम से लड़ खुशियाँ मिले तब बनती है बात।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
achhi rachna....badhai ho
जवाब देंहटाएंसुस्वागतम्.....
जवाब देंहटाएंएक बार अपने परिचय वाले प्रश्नों को भी पोस्ट में डाल दीजिए..
शायद कुछ जबाव मिलें....
wahh....umda ..kavita badi hi sundar or bhawo wali hai..asaa hi likhte rahiye..aage posting ka intjaar hai
जवाब देंहटाएंआप की रचना प्रशंसा के योग्य है . लिखते रहिये
जवाब देंहटाएंचिटठा जगत मैं आप का स्वागत है
गार्गी
हुज़ूर आपका भी .......एहतिराम करता चलूं .....
जवाब देंहटाएंइधर से गुज़रा था- सोचा- सलाम करता चलूं ऽऽऽऽऽऽऽऽ
कृपया एक अत्यंत-आवश्यक समसामयिक व्यंग्य को पूरा करने में मेरी मदद करें। मेरा पता है:-
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शुभकामनाओं सहित
संजय ग्रोवर
धन्यवाद दोस्तो..आप सब की प्रशंसा ने हैरान किया…और खुश भी…कोशिश रहेगी के वो लिखूं जो खुदा को पसंद हो…रब से कहाँ जुड़ा है उसका बंदा…
जवाब देंहटाएंचाँद