शनिवार, 23 मई 2009

कोइ बाज़म-ए-ख़याल फिर सजे


कोइ बाज़म--ख़याल फिर सजे
कोइ समान--घूम तो हो
कोइ जूसतजू फिर दिल की करे
कोइ उम्मीद मुबहाँ तो हो
कोइ सताए फिर आकर हुमें
कोइ दर्द फिर कूम तो हो
कोइ हासिल--दीवानगी ना नही
कोइ सिला मेरे हुंदम तो हो
कोइ शुमार अख़्तर क्या करे
कोइ शब ऐसी सनम तो हो
कोइ जुनून जागे फिर ख्वाब से
कोइ ऐसा हसीन सितम तो हो
कोइ घड़ी ज़ीस्ट सी भी लगे
कोइ लम्हा चाँद करम तो हो

3 टिप्‍पणियां:

  1. कोइ सताए फिर आकर हुमें
    कोइ दर्द फिर कूम तो हो
    wah kya baat hai !ye to dard ki intehaan hi ho gai . zindagi main kabhi na kabhi aisaa sabko mahsoos hota hai ki koi hame chede sataaye aur dard kuchh to kam ho jaaye.
    aaj fir dil ne li hai angdaai,
    aaj fir uski hamko yaad aai .
    kaash fir mujhko wo sataaye ,
    raah chalte pakde meri kalaai.

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  2. shukriya..ji khayal hi tou hai..kuch bhi chah sakta hai.

    chaand

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