लज़्ज़त-ए-इश्क़ गर गुनाह होज़ाये
कभी हम से यह ख़ाता होज़ाये
अक़हल–ओ-शऊर का अब खुदा हफ़ीज़
इश्क़ की हेर अदा खुदा होज़ाये
परवाना जला शम्मा,सहेर होने तक
सोज़-ए-इश्क़ मुझे उम्र-भर आटा होज़ाये
करम,गर दामन-ए-यार हाथ आजाए
“चाँद”दर्द-ए-मोहब्बत और सवा होज़ाये
लज़्ज़त-ए-इश्क़ गर गुनाह होज़ाये
जवाब देंहटाएंकभी हम से यह ख़ाता होज़ाये
beshak sahi likhaa hai . ishk bhi shaadi ke laddoo ki maanind hai jo khaaye pachhtaaye na wo pachhtaaye
ji ye vo laddu hai jo her kisi ke haath na aaye.bahut nayab laddu hai..
जवाब देंहटाएंchaand