बुधवार, 12 अगस्त 2009

या-रब ये कौनसी मंज़िल है



या-रब ये कौनसी मंज़िल है
ख़याल कहीं,कहीं दिल है
एक शहर, जो कभी अपना था
अब यादों मे शामिल है
कोई ज़मीन कहाँ चुनता है
बस हस्ती का अपनी क़ाएल है
ख्वाब होश के दुश्मन हैं
खीर्ड फिर भी उनपेर माएल है
क्या फ़र्क़ एमआरत और बे-दर का
तेरे आयेज हेर कोइ साएल है
मुमताज़ जो इंसान को करती है
वो शाए कुछ और नही दिल है
छूँड लम्हे जो हाथ आए हैं
यही समझो तो माता-ए-कुल है
एक आँसू जो किसी का चुन लो तुम
बरज़ाक़ पेर भारी वो झिलमिल है
हेर आँख उम्मीद का मरकज़ है
एक क़दम की दूरी पेर साहिल है
हेर होनी का वक़्त मुआईं है

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