साक़ि ने माए-काशी
साक़ि ने माए-काशी का
हसीन गर सीखा दिया
कुछ होश जो आया तो
फिर जलवा दिखा दिया
जाम-ओ-सबु से घरज़
दीवानों को ना सही
अपने महबूब के दर्र को
माए-खाना बना दिया
मस्त-ए-घूम जो थे
उन्हें प्याला थमा दिया
साक़ि को प्यास ने
सैर होना सीखा दिया
आए नाबरेड आज़मा-ए-वक़्त
तुझे क्या क्या बना दिया
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