ना आवाज़ दे वो ख़याल को हक़ीक़तों का जिसे शऊर हो उसे घरज़ क्या जहाँ की भीड़ से जो आसमानों मे माशूर हो तू पुकारता है जिसे है यहीं वो कोई भरम नही के डोर हो मोहब्बत है एक खामोश अदा ज़रूरी नही के वाँ शोर हो तू जानता है,नही पहेचआंता आईना बन,के उसे घुरूर हो
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