आज फिर होश माँगता है दिल आज फिर जी उतना चाहता है दिल क्या खबर रहबार क्यों रुका है सफ़र फिर उसकी संगतों का असर चाहता है दिल मैखाना जिसके आगे मदहोश था वो लम्हा बूँद बूँद फिर चाहता है दिल चराघ-ए-दिल खुद बखुद जुल उठे वो माए आतिशी फिर चाहता है दिल जहाँ गुल बिछे थे उसके क़दमों तले उस जगह फिर सर झुकना चाहता है दिल दिलजलों की जेया-ए-पनाह वो सकूँ गाह आज फिर वहीं जाना चाहता है दिल ये कौन रोकता है हुमें भला नही नही,अब आज़ाद होना चाहता है दिल कल खुशी समझे थे जिसे सराब था उस फरेब से निकल जाना चाहता है दिल ज़िंदगी एक नज़र पेर तेरे मुहित थी फिर वही नज़र पाना चाहता है दिल मैने सुना है खीज़ार का पयाँ ये दीवानो,खुदा समझाना चाहता है दिल