
आए ज़िंदगी अब तुझ मे
वो बात ही कहाँ है
अब आए आसमान तुझ मे
कहाँ कोई कहकशां है
आए उदास रात तुझ मे
कोई कार्ब नीं जान है
इस सारा-सींगी के पीछे
कोइ खामोश सा तूफान है
था जहाँ किरदारों का मेला
अब कहाँ वो दास्तान है
हेर मुस्कुराहट के पीछे
कोई घरज़ हुक्मरान है
इन लकड़िओन के घरों मे
अब कहाँ कोई मकान है
देख मोसमों की बेवफ़ाइ
हवा कूब से परेशन है
है हेर सुबह माचीनों सी
ज़िंदगी अब ना-मेहेरबान है
शामों को तो ढालना है
वक़्त भला रुकता कहाँ है
एक मई ही पथराई नही हूँ
यहाँ हेर कोई चतान है