ये दिया जो टिमटिमा रहा है
दे गया है सुरघ रोशनी का
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सदियों की मुसाफतों ने
उमरभार की कोफ़टोन ने
तका दिया है हम को
अजब है घूम-ए-दुनिया
ताक़ब मे है मुसलसल
हेर दिन नया जहद है
खुद से नया अहद है
दुनिया-ओ-माफीहा से हूट कर
मिला करेंगे खुद से
अपनी खामोशी भी अब ख़ाता है
तन्हाइई का सकूट भी नराव है
आख़िर इस दुनिया को क्या हुआ है
हेर करवट लगे सज़ा है
आख़िर तुम गये ही क्यों थे
मेरे और ज़माने की डर्मयानी
वहेड दीवार तुम्ही थे
अब रोज़ आते हैं पठार
अब उनके हाथ ये मास्घाला है
अकेला शिकार आसान होगआया है
चलो चलाओ सारे तीर-ओ-नश्तर
अब हम मे खुदा बोल उठेगा
मज़लूम दिल की आ से भी पहले
रब बेकसों का दिल थाम लेगा
डरो नादनो वक़्त के गाज़ाब से
ये कभी एक़्सा नही रहेगा
इस दिल ने मार कर भी दी ज़िंदगी है
चोट खा कर भी तमन्ना यही की है
काश सिटमगारों को कभी सकूँ आए
ये ज़ख़्म ही उनका मदवा बन जाए
खुदा ने आज़माशों से ही लिखे मोक़दार
इनके बाघैर आबूर हो ना सके समंदर
आए दिल जुब सब तुझे पत्ता है
फिर क्यों ये आ-ओ-बका है
तुझे याद हो के याद ना हो
ये राअस्ते तूने ही चुने थे
फिर शिकवा कैसा नाश्तरों से
जिसे तूने समझा सितम है
शाएेद वही कालीद खिल्ड की हो
क्या ये सकूँ की डॉवा नही है
के खुदा दिल मे ही कहीं है
वो सब सुन रहा है जानता है
टूटे हुए दिलों को वही ताँता है
सुबह शाम उसी से गुफ्तगू है
वो कहाँ नही है वो कू बा कू है